ताज़ा खबर

15 साल से रीवा में टिके जिला रोजगार अधिकारी अनिल दुबे : नियमों की धज्जियां और प्रशासनिक ढिलाई पर सवाल;

नरेंद्र बुधौलिया narendravindhyasatta@gmail.com अगस्त 31, 2025 10:55 AM   City:रीवा

प्रदेश सरकार की स्थानांतरण नीति कागजों में चाहे जितनी सख्त क्यों न हो, हकीकत इससे बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करती है। नियम साफ कहते हैं कि कोई भी अधिकारी किसी जिले में तीन साल से अधिक एक ही पद पर नहीं टिक सकता। मगर जिला रोजगार एवं पंजीयन अधिकारी अनिल दुबे का मामला इस नीति की सच्चाई पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। 

श्री दुबे तकरीबन 15 से 20 साल से रीवा जिले में ही अंगद के पांव की तरह जमे हुए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इतने लंबे समय में उनका न केवल स्थानांतरण नहीं हुआ, बल्कि उल्टे उन्हें कई अतिरिक्त प्रभार देकर (विशेष कृपा) का लाभ दिलाया गया।

सूत्रों का कहना है कि अनिल दुबे की मूल पद स्थापना रीवा जिले में जिला रोजगार एवं पंजीयन अधिकारी के रूप में हुई थी। इसके बाद वर्षों तक वे इसी पद पर डटे रहे। इतना ही नहीं, उन्हें श्रम विभाग के अधीन स्कूलों की जिम्मेदारी, सामाजिक न्याय विभाग और योजना एवं सांख्यिकी विभाग का भी प्रभार थमा दिया गया। यानी एक व्यक्ति को एक साथ कई जिम्मेदारियों का बोझ, मानो जिले में और कोई काबिल अधिकारी बचा ही न हो।

प्रशासनिक जानकारों का कहना है कि यह मामला साफ तौर पर स्थानांतरण नीति की धज्जियां उड़ाता है। सामान्य प्रशासन विभाग का नियम है कि तीन वर्ष पूरे होते ही अधिकारी का स्थानांतरण होना चाहिए। लेकिन दुबे जी पर यह नियम लागू होता नहीं दिखा। सवाल उठता है कि आखिर ऐसी कौन-सी अदृश्य ताकतें हैं जो उन्हें वर्षों से जिले में टिकाए हुए हैं? क्या उनके बिना रीवा का प्रशासन ठप हो जाएगा? या फिर यह पूरे तंत्र पर सवाल खड़ा करता है कि नियम सिर्फ (साधारण) अधिकारियों के लिए हैं और कुछ लोगों पर लागू नहीं होते?


कांग्रेस प्रवक्ता विनोद शर्मा ;-

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विनोद शर्मा ने भी इस पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि (भाजपा सरकार में प्रशासनिक नियम-कानूनों की कोई अहमियत नहीं रह गई है। ) अधिकारी पदों पर वर्षों तक जमे रहते हैं और सरकार आंखें मूंदकर देखती रहती है। जब स्थानांतरण तीन साल बाद होना चाहिए तो फिर आखिर 15 साल से क्यों टिकाए गए हैं? यह बताता है कि सरकार और प्रशासन विशेष अधिकारियों को संरक्षण दे रहा है।

कर्मचारी संगठनों का कहना है कि किसी भी अधिकारी का इतने लंबे समय तक एक ही जिले में बने रहना न केवल अन्य अधिकारियों के साथ अन्याय है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिह्न है। यह स्थिति उस सोच को जन्म देती है कि अधिकारियों की पदस्थापना योग्यता और नियमों से नहीं, बल्कि (संबंधों और संरक्षण) से तय होती है।

जनता में भी इस बात की चर्चा है कि एक ही जिले में लंबे समय तक पदस्थ अधिकारी स्थानीय तंत्र से इतनी गहरी जड़ें जमा लेते हैं कि उनकी निष्पक्षता संदिग्ध हो जाती है। यही वजह है कि लोग तंज कसते हैं कि श्री दुबे का सेवानिवृत्ति समारोह भी यहीं रीवा में होगा और वे पेंशनर होकर ही इस जिले से बाहर जाएंगे।

दरअसल, मामला सिर्फ एक अधिकारी का नहीं है, बल्कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था पर आईना दिखाने वाला है। यदि स्थानांतरण नीति को इसी तरह ताक पर रखा जाएगा तो शासन के {पारदर्शी प्रशासन} के दावे खोखले साबित होंगे। सवाल यह भी है कि वरिष्ठ अधिकारी इस स्थिति को देखकर आंखें क्यों मूंदे बैठे हैं? क्या अतिरिक्त प्रभार सौंपना ही किसी अधिकारी की कार्यक्षमता का पैमाना है?

फिलहाल, जिला रोजगार एवं पंजीयन अधिकारी अनिल दुबे का मामला शासन-प्रशासन की व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करता है। अगर नियम-कायदों का पालन नहीं होगा तो यह संदेश जाएगा कि प्रशासनिक व्यवस्था कुछ चुनिंदा अधिकारियों के लिए {विशेष व्यवस्था} बनकर रह गई है।