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सैनिक स्कूल रीवा का स्थापना दिवस: महाराजा मार्तण्ड सिंह की दूरदृष्टि और देशसेवा को सलाम।

नरेंद्र बुधौलिया narendravindhyasatta@gmail.com जुलाई 20, 2025 10:33 AM   City:रीवा। विंध्य सत्ता

20 जुलाई 1962… यह वही ऐतिहासिक तिथि है जब मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र को एक नई पहचान मिली सैनिक स्कूल रीवा के रूप में। सफेद बाघ की धरती रीवा को जहां प्रकृति ने अद्भुत उपहार दिए, वहीं राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए इस माटी ने वीर सपूतों को तैयार करने वाला यह संस्थान देश को समर्पित किया। इस गौरवशाली संस्थान की नींव रखने में सबसे अहम योगदान रहा रीवा रियासत के अंतिम शासक महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव का, जिन्होंने राष्ट्रहित में अपने निजी वैभव को उदारतापूर्वक दान कर दिया।

जब रजवाड़ों ने बचाई संपत्ति, तब रीवा के राजा ने दान दी मिल्कियत

आज़ादी के बाद जब अधिकांश रियासतों के शासकों ने अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने या व्यवसायिक उपयोग में लगाने की होड़ मचा दी—कई महलों को होटलों में बदल दिया गया, ऐसे समय में महाराजा मार्तण्ड सिंह ने विपरीत दिशा में चलते हुए अपनी मिल्कियत भामाशाह भाव से राष्ट्र को समर्पित कर दी।

उन्होंने युवराज भवन एक भव्य शाही महल को सैनिक स्कूल के लिए दान कर दिया, साथ ही लगभग 301 एकड़ हरित भूमि भी शिक्षा और राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित की। यह दान केवल भवन या ज़मीन तक सीमित नहीं था। जहां ज़रूरत पड़ी, वहां उन्होंने रीवा के विकास के लिए उदार हृदय से सहयोग किया।

फलकनुमा कोठी में आज आईटीआई संचालित हो रही है।

व्यंकट भवन, जो एक भव्य महल था, अब पुरातत्व संग्रहालय है।

औद्योगिकीकरण की शुरुआत के लिए उन्होंने 100 एकड़ भूमि बिड़ला समूह को लगभग निःशुल्क दे दी थी, जहाँ टमस फैक्ट्री स्थापित हुई थी।

सैनिक स्कूल रीवा की स्थापना: एक राष्ट्रीय धरोहर

1961 में रक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) के लिए छात्रों को तैयार करने की मंशा से सैनिक स्कूलों की श्रृंखला शुरू की। भूमि की तलाश के दौरान महाराजा मार्तण्ड सिंह आगे आए और उन्होंने न केवल भूमि देने की पेशकश की, बल्कि अपने महल युवराज भवन को भी सौंपने का प्रस्ताव रखा।

छायाचित्र में महाराज मार्तण्ड सिंह के साथ कर्नल नारंग, चित्र में: स्कूल परिसर में भ्रमण करते महाराज रीवा मार्तण्ड सिंह, प्रथम प्राचार्य कर्नल नारंग व अध्यापकगण।

भारत सरकार ने इस योगदान को सराहते हुए 20 जुलाई 1962 को रीवा में सैनिक स्कूल की स्थापना की। कर्नल आर. आर. नारंग पहले प्राचार्य नियुक्त हुए। उनकी कठोर अनुशासन प्रणाली, उत्कृष्ट शिक्षण गुणवत्ता और संगठनात्मक कौशल से यह स्कूल देश के शीर्ष सैन्य शैक्षणिक संस्थानों में शुमार हुआ।

राष्ट्रीय एकता और शौर्य का प्रतीक

सैनिक स्कूल रीवा केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया।

देश के कोने-कोने कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से कोलकाता तक से छात्र यहां प्रवेश लेने लगे। हर माता-पिता का सपना बन गया कि उनका बेटा इस गौरवशाली संस्थान का हिस्सा बने।

इस स्कूल के कैडेट्स ने समय-समय पर अपने शौर्य का लोहा मनवाया।

1971 के भारत-पाक युद्ध में पहली बार इस स्कूल के छात्रों को सेवा का अवसर मिला।

हर सैन्य संघर्ष और आतंकवाद विरोधी अभियान में रीवा सैनिक स्कूल के प्रशिक्षित अधिकारी अग्रिम पंक्ति में रहे।

गौरवशाली उपलब्धियाँ

थलसेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी

नौसेनाध्यक्ष एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी

दोनों ही इस स्कूल के भूतपूर्व छात्र हैं।

इसके अलावा—

3 वीर चक्र

3 शौर्य चक्र

कई गैलेंट्री अवॉर्ड्स

इस स्कूल के नाम दर्ज हैं।

सिर्फ सैन्य क्षेत्र ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवा, पत्रकारिता, शिक्षा और साहित्य में भी इस स्कूल के पूर्व छात्रों ने राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय कार्य किए हैं।

आज स्थापना दिवस पर...



हम उन वीर योद्धाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने इस धरती से निकलकर राष्ट्र की रक्षा में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।

स्व. महाराज मार्तण्ड सिंह को बारंबार नमन, जिन्होंने बिना किसी निजी स्वार्थ के यह अमूल्य योगदान दिया।

कर्नल आर. आर. नारंग को सलाम, जिनकी मेहनत ने इस संस्थान को उत्कृष्टता के शिखर तक पहुँचाया।

सैनिक स्कूल रीवा सिर्फ एक स्कूल नहीं, राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला है, जहाँ हर सुबह राष्ट्रगान की गूंज के साथ भविष्य के योद्धा अपने कर्तव्य और देशभक्ति का पाठ पढ़ते हैं।