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रीवा कलेक्ट्रेट में अनुकंपा नियुक्ति का महाघोटाला!

रीवा जिला प्रशासन के कलेक्ट्रेट से एक ऐसा खुलासा हुआ है, जिसने सरकारी सिस्टम की ईमानदारी और पारदर्शिता पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। सहायक ग्रेड-3 के पद पर कार्यरत अभिराम मिश्रा ने अपनी नौकरी बचाने के लिए ऐसा खेल रचा, जिसे जानकर शहर से लेकर मंत्रालय तक हलचल मच सकती है।

फर्जीवाड़े का पूरा खेल

सूत्रों के अनुसार, अभिराम मिश्रा को अनुकंपा नियुक्ति के तहत नौकरी मिली थी, लेकिन नियम के मुताबिक परिवीक्षा अवधि पूरी करने के लिए उन्हें CPCT (कंप्यूटर दक्षता प्रमाण पत्र) पास करना जरूरी था। इसी प्रमाण पत्र को हासिल करने के लिए मिश्रा ने सीधे कानून की धज्जियां उड़ाईं।

बताया जाता है कि वे स्वयं स्थापना शाखा में कार्यरत थे और इसी पद का फायदा उठाते हुए उन्होंने एक फर्जी CPCT मार्कशीट तैयार की। इस जाली दस्तावेज को उन्होंने परिवीक्षा अवधि पूरी करने के प्रमाण के रूप में जमा कर दिया

शक की सुई और सच्चाई का खुलासा

जब जमा की गई मार्कशीट पर संदेह हुआ, तो कलेक्टर प्रतिभा पाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए MPSEDC को पत्र लिखकर इसकी जांच करवाई। जवाब में डाक और ईमेल दोनों माध्यमों से जो तथ्य सामने आए, वे चौकाने वाले थे— स्पष्ट लिखा था कि "अभिराम मिश्रा CPCT परीक्षा में फेल हैं और उनकी प्रस्तुत मार्कशीट पूरी तरह कूट रचित (फर्जी) है।" बड़ी जनकारी दबाने का खेल

जब जमा की गई मार्कशीट पर संदेह हुआ, तो कलेक्टर प्रतिभा पाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए MPSEDC को पत्र लिखकर इसकी जांच करवाई। जवाब में डाक और ईमेल दोनों माध्यमों से जो तथ्य सामने आए, वे चौकाने वाले थे—


स्पष्ट लिखा था कि "अभिराम मिश्रा CPCT परीक्षा में फेल हैं और उनकी प्रस्तुत मार्कशीट पूरी तरह कूट रचित (फर्जी) है।"


बड़ी जनकारी दबाने का खेल

अब सबसे अहम सवाल यह है कि जब सच्चाई इतनी साफ थी, तो यह गंभीर जानकारी तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों तक क्यों नहीं पहुंचाई गई? क्या कोई इस मामले को दबाने में शामिल था? क्या कलेक्ट्रेट के भीतर कोई ऐसा नेटवर्क सक्रिय है, जो इस तरह के फर्जीवाड़ों को बचाता है?

कलेक्टर पर निगाहें

कलेक्टर प्रतिभा पाल अपनी सख्त कार्यशैली और ईमानदारी के लिए जानी जाती हैं। लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस मामले में दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी।

सबकी जानकारी सामने आने के बाद कलेक्टर प्रतिभा पाल ने स्पष्ट कहा कि— "ऐसे मामलों में किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी, दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी और पूरे प्रकरण की गहन जांच कराई जाएगी।"

जनता के मन में उठ रहे सवाल

क्या अभिराम मिश्रा पर आपराधिक प्रकरण दर्ज होगा?

क्या फर्जी दस्तावेज बनाने में शामिल अन्य लोगों के नाम सामने आएंगे?

क्या कलेक्ट्रेट का आंतरिक तंत्र इस तरह के घोटालों को बढ़ावा दे रहा है?

रीवा का यह मामला सिर्फ एक कर्मचारी का फर्जीवाड़ा नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक सिस्टम की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर गहरा प्रश्नचिन्ह है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सचमुच दोषियों को सजा मिलती है या फिर यह भी कई अन्य मामलों की तरह कागज़ों में दफन होकर रह जाएगा।