महामृत्युंजय धाम, रीवा — मृत्यु को परास्त करने वाला अद्भुत शिवधाम।

रीवा की पावन भूमि, जिसे प्राचीन काल से ही राजा-महाराजाओं की राजधानी और ऋषि-मुनियों की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है, आज भी अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमय धार्मिक स्थलों के लिए जानी जाती है। इन्हीं स्थलों में सबसे प्रमुख और अद्भुत धाम है महामृत्युंजय मंदिर, जो न केवल रीवा बल्कि पूरे भारतवर्ष की आध्यात्मिक पहचान बन चुका है।
स्थान का परिचय: रीवा किले के गर्भ में बसा अमरत्व का मंदिर
रीवा नगर के हृदयस्थल पर स्थित है रीवा का ऐतिहासिक किला, जो विंध्य क्षेत्र की गौरवगाथा का प्रतीक है। इसी किले की गोद में बसा है महामृत्युंजय मंदिर एक ऐसा धाम जो शिव के उस रूप को समर्पित है जो मृत्यु को भी जीतने वाला है। यहाँ भगवान शिव महामृत्युंजय के स्वरूप में विराजमान हैं और ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहाँ आकर दर्शन करता है, महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता है। वह मृत्यु के भय, असाध्य रोगों और मानसिक कष्टों से मुक्ति पा लेता है।
अलौकिक शिवलिंग: 1001 सूक्ष्म छिद्र और मौसम के साथ बदलता रंग
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहाँ स्थित स्वयंभू शिवलिंग जो अपने भीतर अनगिनत रहस्य समेटे हुए है। यह शिवलिंग 1001 सूक्ष्म छिद्रों (नेत्रों) से युक्त है जिन्हें देवदृष्टि का प्रतीक माना गया है। ये नेत्र भक्तों की प्रार्थना को शिव तक सीधे पहुँचाने का माध्यम माने जाते हैं।
विशेष बात यह है कि यह शिवलिंग सफेद रंग का है, लेकिन यह मौसम के अनुसार अपना रंग बदलता है। शीतकाल में इसका रंग हल्का नीला-धूसर, ग्रीष्मकाल में दूधिया सफेद और वर्षा ऋतु में इसका रंग मटमैला हो जाता है। यह केवल एक वैज्ञानिक या भौतिक घटना नहीं, बल्कि लोगों के लिए यह भगवान शिव की चेतन उपस्थिति का प्रमाण है।
मंदिर की उत्पत्ति: शिकार, चमत्कार और एक राजा की भक्ति
मंदिर से जुड़ी जनश्रुति के अनुसार, लगभग 500 वर्ष पूर्व जब रीवा पर बघेल वंश का शासन था, तब एक बार रियासत के राजा शिकार पर निकले। जंगल में उन्होंने देखा कि एक शेर एक हिरण का पीछा कर रहा है, लेकिन उसे कोई हानि नहीं पहुँचा रहा। इस विलक्षण दृश्य से प्रभावित होकर राजा समीप पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक दिव्य शिवलिंग दिखाई दिया, जो 1001 छिद्रों वाला था।
राजा को इस स्थान पर अलौकिक ऊर्जा का अनुभव हुआ और उन्होंने यहाँ महामृत्युंजय भगवान का भव्य मंदिर बनवाया। तत्पश्चात् उसी परिसर में रीवा का विशाल किला भी बसाया गया। आज भी यह मंदिर रीवा के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का केन्द्र है।
स्वप्नादेश और साधुओं की कथा
एक और लोककथा के अनुसार, वर्षों पहले कुछ साधु महामृत्युंजय भगवान की प्रतिमा के साथ तीर्थयात्रा पर निकले थे। रात्रि विश्राम के दौरान उन्हें स्वप्न में भगवान शिव ने आदेश दिया कि यह मूर्ति इसी स्थान पर स्थापित की जाए। साधुओं ने उसी क्षण आज्ञा का पालन किया और यहीं इस अद्वितीय धाम की नींव पड़ी।
महामृत्युंजय मंत्र: जीवन की ऊर्जा, मृत्यु पर विजय
महामृत्युंजय मंदिर में नियमित रूप से महामृत्युंजय मंत्र का जाप होता है।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
यह मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है और इसे (संजीवनी मंत्र) भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप रोग, मृत्यु और भय से मुक्ति दिलाता है और मानसिक व शारीरिक आरोग्यता प्रदान करता है। यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु इस मंत्र के प्रभाव से अपने जीवन को दिशा देते हैं।
श्रावण मास: जब श्रद्धा का महासागर उमड़ पड़ता है
श्रावण मास आते ही रीवा का महामृत्युंजय मंदिर श्रद्धालुओं से भर जाता है। विशेषकर सावन के सोमवार को यहाँ हजारों की संख्या में लोग भोलेनाथ के दर्शनों के लिए आते हैं। मंदिर में विशेष रुद्राभिषेक, अर्चन, महामृत्युंजय जाप, भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण का आयोजन होता है।
श्रद्धालु जन पैदल यात्रा कर दूर-दूर से यहाँ आते हैं और इस मंदिर में जल अर्पित कर अपने जीवन की हर बाधा के दूर होने की प्रार्थना करते हैं।
राजपरिवार का संरक्षण और मंदिर की ऐतिहासिक भूमिका
रीवा राजघराने के समय से ही इस मंदिर को शाही संरक्षण प्राप्त रहा है। राजपरिवार स्वयं इस मंदिर के रक्षक रहे हैं और हर शिवरात्रि व बसंत पंचमी के अवसर पर विशेष पूजा और महायज्ञ का आयोजन किया जाता रहा है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि रीवा के इतिहास और संस्कृति की अमिट धरोहर भी है।
मंदिर के मुख्य पुजारी वनस्पति तिवारी ने बताया कि सुबह 4 बजे जैसे ही मंदिर के पट खुले, भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। जल, दूध और पूजन सामग्री लेकर श्रद्धालु पहुंचते रहे और पूरे परिसर में ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे’ का मंत्र गूंजता रहा।
मंदिर परिसर आध्यात्मिकता और संस्कृति का संगम
महामृत्युंजय मंदिर केवल एक अलग-थलग धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह रीवा के किला परिसर में स्थित है जहाँ अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों की श्रृंखला है जैसे!
राजाधिराज मंदिर रीवा नरेश की कुलदेवी को समर्पित मंदिर
जगन्नाथ मंदिर भगवान जगन्नाथ की दुर्लभ मूर्ति सहित आकर्षक वास्तु
किला संग्रहालय और तोपें रीवा की सैन्य और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक।
यह समूचा क्षेत्र एक जीवंत धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा का अनुभव देता है।
महत्वपूर्ण आयोजन व तिथियाँ
महाशिवरात्रि विशेष पूजन, रात्रि जागरण व भव्य रुद्राभिषेक
बसंत पंचमी विशाल मेला, सांस्कृतिक आयोजन और भंडारा
सावन के सोमवार हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति, भक्तिमय वातावरण
रीवा का गौरव, भारत की आध्यात्मिक थाती
महामृत्युंजय धाम केवल एक मंदिर नहीं, यह रीवा की आत्मा है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ मृत्यु का भय समाप्त होता है, जहाँ रोग और क्लेश अपने आप नष्ट हो जाते हैं, और जहाँ ईश्वर से एक जीवंत संवाद होता है।
यह धाम हमें बताता है कि जब श्रद्धा प्रबल होती है, तब चमत्कार स्वयं घटित होते हैं।
जय महामृत्युंजय भगवान!
ॐ नमः शिवाय।
