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रीवा की बेटी आयुषी वर्मा बनीं विंध्य की पहली महिला लेफ्टिनेंट, CDS में हासिल की देशभर में प्रथम रैंक;

मनीष मिश्रा manishvindhyasatta@gmail.com सितम्बर 01, 2025 11:18 AM   City:रीवा

विंध्य की धरती ने एक बार फिर देश को गौरवान्वित किया है। रीवा की होनहार बेटी आयुषी वर्मा ने भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बनकर न सिर्फ रीवा बल्कि पूरे विंध्य अंचल का नाम रोशन किया है। प्रतिष्ठित सीडीएस (Combined Defence Services Exam) में उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 24 और टेक्निकल शाखा में पूरे देश में प्रथम स्थान (AIR-1) प्राप्त किया है। यह गौरवशाली उपलब्धि न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे विंध्य क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक क्षण है।

आयुषी वर्मा,

आयुषी की प्रारंभिक शिक्षा रीवा के एक प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल में हुई, जहाँ उनके पिता बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहने वाली आयुषी ने अनुशासन और मेहनत को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना लिया था। बारहवीं कक्षा के दौरान ही उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें सेना में जाकर देशसेवा करनी है। उसी समय से उन्होंने सीडीएस परीक्षा की तैयारी शुरू की और कठोर मेहनत के बल पर सफलता हासिल की।

आयुषी बताती हैं कि उनकी प्रेरणा विंध्य की ही बेटी और देश की पहली महिला फाइटर पायलट अवनी चतुर्वेदी रही हैं। अवनी की तरह ही उन्होंने भी देश की सेवा का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की। आयुषी का परिवार भी हमेशा उनके साथ खड़ा रहा। उनके बड़े भाई भी एसएसबी कैंडिडेट रहे, लेकिन मेडिकल कारणों से सेना में शामिल नहीं हो पाए। बावजूद इसके उन्होंने बहन का मनोबल बढ़ाया और हर कदम पर उनका मार्गदर्शन किया।

अपनी सफलता पर आयुषी कहती हैं – अगर लक्ष्य स्पष्ट हो और मेहनत ईमानदारी से की जाए तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं होती। उनका यह जज़्बा आज हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है।

आयुषी की उपलब्धि से रीवा और पूरे विंध्य क्षेत्र में खुशी की लहर है। परिवार, रिश्तेदार, शिक्षक और शुभचिंतक बधाइयों का तांता लगाए हुए हैं। सोशल मीडिया पर भी लोग उनकी सफलता की सराहना कर रहे हैं और उन्हें नई पीढ़ी की रोल मॉडल बता रहे हैं।

रीवा की आयुषी वर्मा ने साबित कर दिया है कि बेटियाँ किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। उनकी यह सफलता न केवल विंध्य की बेटियों के आत्मविश्वास को नई उड़ान देगी बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह संदेश देगी कि सपने चाहे कितने बड़े क्यों न हों, मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति से उन्हें साकार किया जा सकता है।