श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में बैक डोर से 8 टेक्नीशियन भर्ती, अनुभवहीनों को थमाई गई करोड़ों की मशीनें।

श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में एक बार फिर नियुक्तियों को लेकर विवाद गहरा गया है। कॉलेज प्रशासन ने एमआरआई और सीटी स्कैन मशीनों के संचालन हेतु स्वीकृत आठ टेक्नीशियन पदों पर बिना विज्ञापन और इंटरव्यू के भर्ती कर ली। पहले सात पद भरे गए थे, जबकि आठवां पद अंजली की अचानक हुई एंट्री से पूरा कर दिया गया।
इन नियुक्तियों में केवल दो ही उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके पास थोड़ा-बहुत अनुभव है, शेष छह पूरी तरह अनुभवहीन हैं। अंजली और उमा देवी की भर्ती ने न केवल कॉलेज स्टाफ बल्कि पूरे मेडिकल जगत को चौंका दिया है।
सिफारिशों का खेल, नियम-कायदों की अनदेखी
श्याम शाह मेडिकल कॉलेज पहले से ही सिफारिश आधारित नियुक्तियों के लिए बदनाम रहा है। मेडिकल रिकॉर्ड ऑफिसर पद पर भी नियमों की धज्जियां उड़ाकर नियुक्ति की गई थी। अब आउटसोर्सिंग के जरिए की गई टेक्नीशियन भर्ती भी विवादों में है।
सूत्र बताते हैं कि नियुक्त हुए अधिकांश उम्मीदवारों को किसी मशीन का व्यावहारिक ज्ञान तक नहीं है। कुछ ने तो कभी एक्स-रे मशीन तक नहीं चलाई। अब इन्हें एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी करोड़ों रुपए की हाईटेक मशीनों का जिम्मा सौंपा गया है।
15 दिन में बनाएंगे ‘एक्सपर्ट’,
नियुक्ति के बाद कॉलेज प्रबंधन ने इन आठों की ट्रेनिंग शुरू करा दी है। दावा है कि 15 दिन की ट्रेनिंग के बाद इन्हें मशीनें चलाने में दक्ष बना दिया जाएगा। लेकिन सवाल उठ रहा है कि जिन्हें इंसानी शरीर और रेडियोलॉजी मशीनों का प्राथमिक ज्ञान तक नहीं, वे महज 15 दिन में एक्सपर्ट कैसे बन जाएंगे? क्या यह सीधे-सीधे मरीजों की जान से खिलवाड़ नहीं है?
किनके नाम शामिल हैं लिस्ट में,
डीन ने जिन आठ लोगों की नियुक्ति की है, उनमें पवन दुबे, अनुज पाण्डेय, आशीष गौतम, अरविंद सोनकर, उमा देवी पाठक, नीलेश अरकेल, विपुल प्रकाश मिश्रा और अंजली का नाम शामिल है। बताया जाता है कि इन सभी ने किसी न किसी स्तर पर सिफारिश का सहारा लिया। सिर्फ अनुज पाण्डेय और विपुल मिश्रा को पहले से रेडियोलॉजी का अनुभव है, बाकी पूरी तरह नए हैं।
पढ़ाई अधूरी, फिर भी नौकरी पक्की,
सूत्रों का कहना है कि आशीष गौतम की पढ़ाई अभी पूरी नहीं हुई है। उन्होंने परीक्षा दी है, लेकिन रिजल्ट आना बाकी है। इसके बावजूद उन्होंने बाहर का सर्टिफिकेट लगाकर नौकरी हासिल कर ली। वहीं उमा देवी पाठक की बहन जिला अस्पताल में पदस्थ हैं, और उनकी सिफारिश से ही यह नौकरी पाई गई। बाकी उम्मीदवार सीधे कॉलेज की नौकरी पाकर अब यहीं से अनुभव बटोरेंगे।
अनुभवी उम्मीदवारों की अनदेखी,
एमआरआई और सीटी स्कैन पदों की स्वीकृति मिलते ही कई अनुभवी और योग्य युवाओं ने डीन को आवेदन दिए थे। इनमें ऐसे तकनीशियन भी शामिल थे जिनके पास वर्षों का अनुभव था। लेकिन उनके आवेदनों को दरकिनार कर दिया गया और अनुभवहीनों को नौकरी दे दी गई। यह निर्णय कॉलेज प्रशासन की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
सवालों के घेरे में डीन,
बिना विज्ञापन और इंटरव्यू के भर्ती क्यों की गई?
अनुभवी उम्मीदवारों को क्यों नज़रअंदाज़ किया गया?
करोड़ों की मशीनों को अनुभवहीनों के हवाले करना क्या मरीजों की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं है?
आउटसोर्सिंग के नाम पर सिफारिश आधारित भर्तियों की यह परंपरा कब रुकेगी?
टेक्नीशियन भर्ती विवाद
कुल स्वीकृत पद – 8
भरे गए पद – 8 (अंतिम पद अंजली को मिला)
अनुभवी उम्मीदवार – केवल 2
पूरी तरह नए/अनुभवहीन – 6
पढ़ाई अधूरी, फिर भी चयनित – 1 (आशीष गौतम)
सिफारिश पर भर्ती के आरोप – सभी उम्मीदवार
अब यह मामला न केवल कॉलेज की कार्यप्रणाली बल्कि मरीजों की जान की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
