रीवा में परिवहन विभाग पर अवैध वसूली का सनसनीखेज मामला;

रीवा जिले में परिवहन विभाग (RTO) पर स्थानीय ट्रक चालकों से भारी अवैध वसूली के सनसनीखेज आरोप लगे हैं। ट्रक चालकों का आरोप है कि उन्हें 10 हजार से लेकर 60 हजार रुपये तक की मनमानी वसूली के लिए मजबूर किया जा रहा है। यदि राशि नहीं दी जाती, तो चालकों की गाड़ियाँ जबरन RTO कार्यालय परिसर में खड़ी कर दी जाती हैं।
यह मामला इसलिए और गंभीर हो जाता है क्योंकि अब परिवहन विभाग सीधे रीवा संभागीय कार्यालय के अधीन कार्य करता है। ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या स्थानीय प्रशासन इन कृत्यों से पूरी तरह अनजान है या फिर यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है?
मध्यप्रदेश परिवहन विभाग का संचालन राज्य परिवहन नीति, मध्यप्रदेश मोटर वाहन अधिनियम, 1989 तथा केंद्र सरकार के मोटर वाहन अधिनियम, 1989 के तहत होता है। नियम स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी भी प्रकार की वसूली के लिए वैध रसीद जारी करना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, अनावश्यक रूप से वाहन चालकों को परेशान करना तथा उनकी गाड़ियों को जबरन कार्यालय परिसर में खड़ा करना पूरी तरह गैरकानूनी है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मनीष त्रिपाठी का नेटवर्क इस पूरे अवैध वसूली कांड में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। रिंग रोड रीवा पर हाईवे किनारे चेकपोस्ट बनाकर दलाल बेटा पाठक, दिलीप शर्मा और विनोद शुक्ला मिलकर प्राइवेट लोगों के साथ मिलकर मनमानी चुंगी वसूल रहे हैं।
एक ट्रक चालक ने बताया, हमारी गाड़ी में इमरजेंसी सेवाओं हेतु आवश्यक दवाइयाँ थीं। इसके बावजूद पिछले 24 घंटे से वाहन RTO कार्यालय परिसर में खड़ा है। 10 हजार से लेकर 60 हजार रुपए की मांग की जा रही है, लेकिन कोई वैध रसीद नहीं दी जा रही।
थाना प्रभारी विजय सिंह बघेल ने कहा कि कई ट्रक चालकों ने शिकायत दर्ज करवाई है। उन्होंने आश्वासन दिया कि आरोपों की गंभीरता से जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल बना रहता है कि यदि परिवहन विभाग अब संभागीय कमिश्नर के अधीन है, तो उच्च स्तरीय निगरानी एवं पारदर्शिता के बावजूद ऐसे भ्रष्टाचार की घटनाएँ कैसे संभव हो रही हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि विभागीय भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए नियमों में स्पष्ट प्रावधान मौजूद हैं:-
सभी वसूली पर वैध रसीद अनिवार्य है।
वाहन चालकों के परमिट, फिटनेस, पॉल्यूशन जांच आदि केवल निर्धारित प्रक्रिया के तहत पारदर्शिता से किए जाने चाहिए।
किसी भी प्रकार की मनमानी कार्रवाई पूरी तरह गैरकानूनी है, जिसके लिए परिवहन अधिनियम की धारा 113 (भ्रष्टाचार से संबंधित प्रावधान) के तहत सजा का प्रावधान है।
फिर भी यह मामला इस बात की ओर इशारा करता है कि रीवा में प्रशासनिक तंत्र भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अभियान से पूरी तरह असंवेदनशील बना हुआ है। जनता में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर कौन सी गुप्त ताकतें हैं, जो मनीष त्रिपाठी जैसे अधिकारी को भ्रष्टाचार के इस खेल को जारी रखने में मदद दे रही हैं।
प्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अगुवाई में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान तो तेज गति से चल रहा है, लेकिन रीवा में व्याप्त इस अवैध वसूली के खेल ने सरकार की साख पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
