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पितृपक्ष विशेष : विन्ध्य में पूर्वजों के तर्पण की अद्भुत परंपरा, केसरिया वस्त्र पहनकर जाते हैं गया जी।

नरेंद्र बुधौलिया narendravindhyasatta@gmail.com सितम्बर 08, 2025 12:13 PM   City:रीवा

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जीवन और मृत्यु, सुख और दुख, प्राप्ति और त्याग हर भाव को धर्म और आध्यात्म से जोड़कर देखा जाता है। इसी क्रम में श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष का महत्व अत्यंत गहरा है। मान्यता है कि अश्विन मास की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक 15 दिनों की अवधि में हमारे पितृ स्वर्गलोक से धरती पर आते हैं। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों को स्मरण कर तर्पण, पिंडदान और दान-पुण्य के माध्यम से उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

पूर्वजों के ऋण से मुक्ति का मार्ग,

हिंदू मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा शरीर का बंधन तोड़कर पितृलोक में निवास करती है। अगले जन्म की प्राप्ति तक आत्मा पितर के रूप में अपने वंशजों की ओर देखती रहती है। शास्त्रों में वर्णित है कि पितृपक्ष में विधिपूर्वक तर्पण और पिंडदान करने से पितरों को शांति मिलती है और वंशजों पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। यही कारण है कि इन दिनों हर परिवार अपने पूर्वजों को याद करता है और ब्राह्मणों व गरीबों को श्रद्धापूर्वक भोजन कराता है।

विन्ध्य की अनूठी परंपरा – केसरिया वस्त्रधारण,


विन्ध्य अंचल में पितृपक्ष से जुड़ी एक विशिष्ट परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। यहाँ के अधिकांश परिवार पितरों के तर्पण के लिए गया जी की यात्रा करते हैं। विशेष बात यह है कि यात्रा के समय वे केसरिया वस्त्र पहनते हैं। इसे त्याग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। पिंडदान की अंतिम प्रक्रिया पूरी होने के बाद ये वस्त्र गया के ब्रह्म सरोवर तट पर त्याग दिए जाते हैं। माना जाता है कि जैसे वस्त्र त्याग दिए जाते हैं, वैसे ही वंशज अपने पितरों को मृत्युलोक और पितृलोक से अंतिम विदाई देकर मोक्ष की प्रार्थना करते हैं।

गया जी में पिंडदान की परंपरा,

गया जी पहुँचने के बाद श्रद्धालु सबसे पहले पुनपुन नदी के किनारे पिंडदान करते हैं। इसके बाद विष्णुपद मंदिर के सामने बहने वाली फाल्गु नदी, सूर्यकुंड, सीता कुंड, काकवातीय और प्रेतशिला जैसे पवित्र स्थलों पर क्रमशः तर्पण की विधि पूरी होती है।

पिंडदान जौ, तिल, शहद और घी से बनाए गए 17 छोटे-छोटे पिंडों से किया जाता है। इसमें पूर्वजों के नाम लेकर जल अर्पित किया जाता है। विशेषता यह भी है कि माता, दादी, परदादी जैसी स्त्री पितरों का पिंडदान बद्रीनारायण धाम में ब्रह्मकपाल पर किया जाता है।

प्रेतशिला पर पितरों के अंतिम संस्कार स्थल से लाई गई मिट्टी छोड़ दी जाती है। अंतिम चरण में ब्रह्म सरोवर पर खोवे (मावा) से पिंडदान किया जाता है। इसके बाद पिंडदानकर्ता स्नान कर अपने केसरिया वस्त्र वहीं त्याग देते हैं।

परिवार से पितरों की विदाई का अनुष्ठान,

विन्ध्य के परिवार गया यात्रा शुरू करने से पहले अपने पूर्वजों के अंतिम संस्कार स्थल पर जाते हैं। वहाँ से थोड़ी-सी मिट्टी लेकर उसे पवित्र कलश में सुरक्षित किया जाता है और पुष्पमालाओं, शंख-घंटियों और घरियाल की ध्वनि के बीच पूर्वजों को ‘गया जी यात्रा’ के लिए आवाहित किया जाता है। यह दृश्य पूरे गाँव और समाज में गहरी आस्था जगाता है।

श्राद्ध पक्ष का मूलतत्व – श्रद्धा,

धार्मिक मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। इस दौरान लोग दान-पुण्य, ब्राह्मण भोजन, गौ सेवा और जरूरतमंदों की सहायता जैसे कार्य करते हैं। विन्ध्यवासियों की केसरिया परंपरा इस श्राद्ध भावना को और भी विशेष बनाती है।

मोक्ष की प्राप्ति का साधन,

ग्रंथों के अनुसार, जब मनुष्य अपने सत्कर्मों और ईश्वर-भक्ति से कर्मबंधन से मुक्त होता है, तभी मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष में किए गए तर्पण और पिंडदान को इस मार्ग की एक महत्वपूर्ण कड़ी माना गया है।

इस प्रकार विन्ध्य क्षेत्र में पितृपक्ष केवल धार्मिक परंपरा भर नहीं है, बल्कि यह आस्था, कृतज्ञता और त्याग का एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है। केसरिया वस्त्रधारण और गया जी में पिंडदान की यह अनूठी परंपरा विन्ध्य की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है।